काफी दिनों बाद मुकुंद आज बहुत खुश था| हो भी क्यों ना, अत्यधिक व्यस्तता के बाद ऑफिस में होली की छुट्टियां जो शुरू हो गई थीं| पत्नी सुभद्रा और बिटिया ईशा भी कई दिनों से बाहर घूमने जाने की जिद कर रहे थे| मुकुंद आखिरकार उन्हें घुमाने ले ही गया| क्योंकि काफी दिनों बाद घर से बाहर निकले थे तो सभी की फरमाईश पूरी करना भी लाज़मी था| जो थोड़े बहुत रूपये मुकुंद के पर्स में थे वह लगभग खत्म हो चले थे|
खाना पीना, घूमने फिरने के बाद जैसे ही मुकुंद ने अपनी बाइक स्टार्ट की, तभी एक गुब्बारे वाला आ गया| ईशा ने चहक कर गुब्बारा लेने की इच्छा जताई, मुकुंद ने मुस्कुरा कर पर्स मैं से 10 रूपये निकाल कर गुब्बारे वाले से पूछा, " कितने का दिया भईया गुब्बारा?"
"10 रूपये का एक है बाबूजी ", गुब्बारे वाले ने उत्तर दिया|
मुकुंद: ठीक है, एक गुब्बारा दे दो|
गुब्बारे वाले ने 10 रूपये लिए और दो गुब्बारे बिटिया को दे दिए|
मुकुंद: अरे भाई, दो नहीं एक ही मांगा है|
"बाबूजी गुब्बारा तो मैंने आपको एक ही दिया हैं, ये दूसरा वाला तो मेरी ओर से बिटिया को होली का ईनाम है", यह कहकर गुब्बारे वाला अपनी साईकिल पर पैडल मार कर सरपट निकल गया|
मुकुंद और सुभद्रा दोनों ही आश्चर्य से गुब्बारे वाले को दूर तक देखते रहे|
सुभद्रा: उसके सारे गुब्बारे बिक चुके थे, एक ही बचा था|घर जाने की जल्दी में उसने दूसरा गुब्बारा दे दिया होगा|
मुकुंद: वजह चाहे जो भी हो, पर सोचो उसका दिल कितना बड़ा और उदार है, एक गरीब आदमी हमारी ईशा को होली का ईनाम दे गया|
मुकुंद ने अपना पर्स टटोला तो देखा उसमें रूपये ज्यादा नहीं बचे थे|
मुकुंद: सुभद्रा, ईशा जल्दी बैठो|
मुकुंद ने तुरंत ही अपनी बाईक उधर मोड़ ली जिधर वो गुब्बारे वाला गया था| थोड़ी दूर जाकर वह मिल गया|
"ओ भईया, रूकना जरा", मुकुंद ने जोर से आवाज़ लगाई|
"हाँ जी बाबूजी, क्या हुआ?", गुब्बारे वाले ने कौतुहलवश पूछा|
"ये लो भईया", पर्स में बचे हुए रूपये गुब्बारे वाले को देकर मुकुंद बोला|
गुब्बारे वाला: अरे ये आप क्या कर रहे हैं?
मुकुंद: भईया ये तुम्हारे बच्चों के लिए हमारी तरफ से होली का ईनाम है|
इतना सुनकर गुब्बारे वाला नि:शब्द हो गया, जिस हाथ में गुब्बारे वाले ने वह रूपये पकड़ रखे थे, मुकुंद ने उस हाथ पर अपना हाथ रखा और बोला, "हमारी खुशी के लिए इन्हें रख लो और घर जाओ"|
"ठीक है बाबूजी" कहकर गुब्बारे वाले ने रूपये माथे से लगाए और "राधे राधे" बोल कर चला गया|
इधर मुकुंद भी अपने घर को लौट चला, मुकुंद की ज़ेब इस समय जरूर खाली थी, लेकिन मन में सुकून था कि उसने भी किसी के बच्चों को होली का ईनाम दिया था|
होली की हार्दिक शुभकामनाएँ|