सत्य घटना से प्रेरित ...
विद्यालय में आज काफी उत्साह का माहौल था| होता भी क्यों नहीं, आज शिक्षक दिवस जो था| सभी कक्षाओं के विधार्थी, अपने-अपने प्रिय शिक्षक-शिक्षिकाओं के विद्यालय में आने का बड़ी ही बेसब्री से इंतज़ार कर रहे थे| मानो बच्चों में होड़ सी ही मच गयी हो कि फलां मैडम या फलां सर के पैर छूकर कौन पहले आशीर्वाद लेगा और कौन सबसे पहले "हैप्पी टीचर्स डे" बोल कर विश करेगा|
धीरे धीरे शुभकामनाओं और आशीर्वाद का यह सिलसिला चलता रहा| देख कर यह अहसास हो रहा था कि इस तेज़ी से बदलते हुए दौर में भी "गुरु-शिष्य" परंपरा अभी विद्यालयों में तो कमसकम जीवंत है| विद्यालय प्रबंधन ने विद्यार्थियों की इच्छा के अनुरूप सिर्फ लंच तक ही कक्षाओं को चलने की स्वीकृति दे दी और उसके बाद विद्यार्थियों द्वारा शिक्षक-शिक्षिकाओं के सम्मान में विभिन्न कार्यक्रम प्रस्तुत किये जाने थे|
कक्षा 10 में कंप्यूटर विषय का लेक्चर था और ज्यों ही केशव सर जो कि कक्षा अध्यापक भी थे, क्लास में आये, सभी विद्यार्थियों ने उन्हें स्नेहपूर्वक घेर लिया और उन्हें उपहार स्वरुप एक दिवार घडी भेंट दी| केशव सर के पूछने पर पता चला कि कक्षा के सभी विद्यार्थियों ने कुछ रूपए एकत्रित किये थे और उन्ही से यह उपहार ख़रीदा गया था| इस सब के बीच केशव सर का ध्यान कक्षा के एक छात्र आलोक पर गया जिसके चेहरे पर एक अलग ही ख़ुशी दिख रही थी| यह ख़ुशी सामान्य नहीं बल्कि कुछ उत्साह से भरी हुई लग रही थी| अपने स्तर से जब केशव सर ने पूछा कि सब विद्यार्थियों ने उपहार के पैसे कहाँ से एकत्रित किये तो किसी ने कहा कि ये उन्होंने कल ही मम्मी से लिए थे, किसी ने अपनी पॉकेट मनी में से दिए थे| लेकिन केशव सर जानते थे कि आलोक के पिता की आर्थिक स्थिति कुछ दिनों से ठीक नहीं चल रही थी, ऐसे में आलोक ने उपहार के पैसे क्यों और कैसे जमा किये, अब यह सवाल केशव सर को परेशान कर रहा था|
कक्षा समाप्त होने के बाद उन्होंने किसी बहाने से आलोक को अपने पास बुलाया और एकांत में पूछा कि क्या उसने भी गिफ्ट के लिए पैसे एकत्रित किये थे तो आलोक ने चहक कर हाँ में उत्तर दिया| आलोक का यह उत्तर आत्मसम्मान से लबरेज़ था| अब केशव सर से रहा नहीं गया| उन्होंने कहा कि क्या उपहार देकर ही गुरु के प्रति अपने सम्मान को प्रदर्शित किया जा सकता है? उन्होंने आलोक को समझाते हुए कहा कि जब कोई छात्र अपने जीवन में एक सफल व्यक्ति बनता है और राष्ट्र निर्माण में अपनी भागीदारी सुनिश्चित करता है तो भी वह अपने शिक्षक को सम्मानित ही कर रहा होता है; फिर इस तरह से उपहार देने की क्या ज़रुरत है? दरअसल केशव सर, आलोक के पिता की आर्थिक स्थिति की वजह से ही ज्यादा चिंतित थे|
यह सब बात छिप कर आलोक का सहपाठी आदित्य सुन रहा था| आदित्य तुरंत सामने आया और उसने केशव सर को बताया कि आलोक ने यह रुपये अपने मम्मी - पापा से नहीं मांगे| तब आश्चर्य चकित होकर केशव सर ने आलोक से पूछा कि फिर यह रुपये कहाँ से आये? तब आलोक ने बताया कि उसने यह रुपये "कमाए" हैं|
"कमाए हैं ... कैसे?" केशव सर ने तपाक से पूछा|
"सर .. आप तो जानते ही हैं कि मेरी ड्राइंग अच्छी है और मुझे यह काम पसंद भी है, इसलिए मैंने अपनी क्लास और दूसरी क्लास के विद्यार्थियों की प्रैक्टिकल फाइल में डायग्राम बना-बना कर यह रुपये कमाए हैं"| और यही रुपये मैंने उपहार के लिए दिए थे| आलोक ने गर्वित होकर कहा|
केशव सर के पास अब शब्द नहीं थे| एकाएक अनेकों सवाल उनके मन में घूम रहे थे कि क्या वह विद्यार्थियों के लिए इतना महत्व रखते हैं? क्या आलोक ने आत्मनिर्भर बनने की दिशा में अपना पहला कदम उठा लिया है? क्या आलोक का इस तरह से रुपये "कमाना" ठीक है?
केशव सर बिना कुछ बोले स्टाफ रूम चले गए| थोड़ी देर में विद्यार्थियों द्वारा रंगारंग प्रोग्राम भी शुरू हो गया| केशव सर वहाँ बैठे तो थे लेकिन वह तो किसी और ही गहरी सोच में थे| स्कूल से लौटते समय वह "अनोखा उपहार" उनके हाथ में ही था और मन में एक दृढ़ निश्चय| निः:संदेह इस शिक्षक दिवस का यह उपहार उनके लिए जीवन के सर्वोत्तम उपहारों में से एक था|
Touching story 👌
ReplyDeleteNice story
ReplyDeleteBadiya
ReplyDeleteGood
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